
जहाँ चीन नाम बदलने की नौटंकी में व्यस्त है, वहीं भारत के अरुणाचल प्रदेश में लोग तिरंगा लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। चीन को न सिर्फ चेतावनी दी गई, बल्कि उसके राष्ट्रपति की तस्वीर तक जलाई गई — ताकि ये स्पष्ट हो जाए कि भारत के लोग सिर्फ नक्शों में नहीं, नीयत में भी भारतीय हैं।
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तिरंगा लेकर हवाई में गूंजा भारत माता की जय
गुरुवार को अंजॉ जिले के हवाई क्षेत्र में स्थानीय लोगों ने चीन के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की। प्रदर्शनकारियों ने हाथ में तिरंगा लेकर कहा:
“हम भारतीय हैं, और रहेंगे। चीन की कोई भी चालाकी यहाँ काम नहीं आने वाली।”
इतना ही नहीं, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तस्वीर को जलाकर विरोध का तीखा रूप दिखाया गया।
किबिथू में CM की कैबिनेट बैठक: चीन के दरवाज़े पर भारत की दस्तक
एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने किबिथू (भारत का अंतिम गांव) में कैबिनेट बैठक करके इतिहास रच दिया। यह कदम रणनीतिक रूप से चीन को आईना दिखाने जैसा था।
सीएम खांडू ने ट्वीट किया:
“हमने ‘कैबिनेट आपके द्वार’ को सीमावर्ती गांव तक लाकर यह संदेश दिया है कि सरकार हर कोने तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध है। अरुणाचल आत्मनिर्भर बने, यही मिशन है।”
सरकार का स्पष्ट संदेश: सीमाएं सिर्फ नक्शे पर नहीं होतीं
राज्य सरकार ने बयान में कहा कि:
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यह बैठक विकास को अंतिम छोर तक पहुँचाने के लिए की गई।
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इससे साफ संकेत गया कि अरुणाचल भारत का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा।
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सीमा विवाद पर चीन का कोई भी एजेंडा सफल नहीं होगा।
विश्लेषण (संजय भटनागर की कलम से):
“जब चीन नाम बदलने की घोषणा करता है, भारत जमीनी हकीकत बदलता है। तिरंगा थामे गांववालों की मुट्ठियाँ और सीमावर्ती कैबिनेट बैठकें वो संदेश हैं, जो बीजिंग की दीवारों को भी हिला सकती हैं।”
चीन के मनमाने दावों पर अरुणाचल के लोगों और सरकार ने जो ज़मीनी जवाब दिया है, वह सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि संप्रभुता का जीवंत प्रमाण है।
अब यह तय है— नाम बदलकर भूगोल नहीं बदला जा सकता, और भारत को छेड़ने की कोशिश करने वालों को हर बार ज़मीनी हकीकत का सामना करना पड़ेगा।
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